“आधुनिकता के युग में रिश्तों के बदलते चेहरे पर सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण”
डॉ. (प्रोफ़ेसर) कमलेश संजीदा गाज़ियाबाद , उत्तर प्रदेश
हम जिस आधुनिक युग में जी रहे हैं, वह केवल तकनीकी और वैज्ञानिक क्रांति से भरा हुआ नहीं है, बल्कि भारतीयता, सामाजिक, सांस्कृतिक, व्यवहारिक, मनोवैज्ञानिक और मानसिक दृष्टिकोण में बदलावों का भी वक्त चल रहा है। यह युग मानव सभ्यता के विकास की नई दिशा और सोच का प्रतीक है, जिसमें पारंपरिक मान्यताओं और रिश्तों के रूप में भी गहरे बदलावों को देखा जा रहा है। अब रिश्तों का मतलब पहले जैसा नहीं रह पा रहा है; जहाँ पहले रिश्ते सिर्फ पारिवारिक और सामाजिक कर्तव्यों के तहत निभाए जा रहे थे, वहीं अब वे एक व्यक्तिगत और व्यावहारिक जरूरत बन चुके हैं। आधुनिकता ने हमारे रिश्तों के स्वरूप को बदल कर रख दिया है, जो न केवल इस युग में सांस्कृतिक दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देता है, बल्कि इसका गहरा प्रभाव हमारे मानसिक, भावनात्मक, और सामाजिक संरचना पर भी पड़ता चला जा रहा है। इस युग को हम “आधुनिकता” के रूप में पहचानते और अपनाते चले जा रहे हैं, जहाँ न केवल हमारीं विचार धाराएँ बदलतीं जा रही हैं, बल्कि मानव जीवन के संबंधों और रिश्तों में भी गहरा परिवर्तन आता चला जा रहा है। समाज में हो रहे इन बदलावों का असर न केवल हमारे व्यक्तिगत जीवन पर, बल्कि , व्यवहारिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों पर भी पड़ता जा रहा है। आधुनिकता के प्रभाव से रिश्तों के रूप और संरचना में भी बदलाव आ रहे हैं। रिश्तों के इस नए रूप को समझने के लिए हमें पहले यह देखना पड़ेगा, कि आधुनिकता क्या है? और इसके प्रभाव से रिश्तों में कौन-कौन से परिवर्तन आ रहे हैं।
आधुनिकता का अर्थ केवल तकनीकी उन्नति या विज्ञान की प्रगति नहीं माना जाता है, बल्कि यह जीवन के दृष्टिकोण और समाज के कार्य करने के तरीके में बदलाव को भी हमारे सामने दर्शाता है। यह एक ऐसा युग है, जिसमें परंपराओं, पुरानी अव-धारणाओं और सामाज में स्थापित हुए नियमों में परिवर्तन हो रहा है। आधुनिकता ने व्यक्तिगत विचारधारा, स्वतंत्रता, समानता, और व्यक्तित्व के अधिकार को प्राथमिकता दी है। इसके परिणामस्वरूप, समाज में पारंपरिक मूल्यों की पुनः परिभाषा आधुनिकता के हिसाब से की जा रही है और रिश्तों का स्वरूप भी तेजी से बदलता चला जा रहा है।
आधुनिकता का अर्थ सिर्फ तकनीकी विकास, विचारधारा एवं सांस्कृतिक नवाचारों से नहीं है। यह एक व्यापक दृष्टिकोण को समाज की सोच, व्यक्तिगत स्वतंत्रता, और संबंधों की परिभाषा को बदलता जा रहा है। आधुनिकता के युग में परंपराएँ, विश्वास और सामाजिक संरचनाएँ ढहतीं चलीं जा रही हैं, और इसके स्थान पर एक नई सोच का दृष्टिकोण उभरता जा रहा है। इसी प्रकार की सोच का असर रिश्तों पर भी पड़ता जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप सामाजिक, पारिवारिक, दाम्पत्य, और मित्रता संबंधों के ढाँचे में बुनियादी परिवर्तन आते जा रहें हैं।
पारंपरिक भारतीय परिवारों में पहले से ही जहाँ संयुक्त परिवार की अवधारणा प्रचलित थी, जो आधुनिकता ने सबसे पहले पारिवारिक संरचना को प्रभावित किया है। पहले जहां संयुक्त परिवारों में लोग एक साथ रहा करते थे और रिश्तों में सामूहिकता और सहयोग हुआ करता था, वहीं अब परिवारों की संरचना में परिवर्तन होता जा रहा है।वहीं अब न्यूक्लियर फैमिली (एकल परिवार) की स्थिति में बदलाव आया है। पहले परंपराओं और सामूहिकता की भावना प्रबल होती थी, जहाँ सभी सदस्य एक साथ रहते थे और एक दूसरे के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े होते थे। अब परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन की बड़ी-बड़ी चुनौतियाँ उत्पन्न होती जा रहा हैं । आधुनिक युग में हर व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता की ओर बढ़ता चला जा रहा है, जहाँ पति-पत्नी और उनके बच्चे भी अलग-अलग रहते हैं। इस बदलाव के कारण पारिवारिक रिश्तों में संवाद की कमी और भावनात्मक दूरी देखी जा रही है। उदाहरण के लिए, पहले दादा-दादी एवं नाना-नानी के पास बैठकर परिवार के सभी सदस्य लम्बे समय तक बातें करते रहते थे, लेकिन आजकल की व्यस्त दिनचर्या में यह संवाद की व्यावहारिकता लगभग गायब होती चली जा रही है।
उदाहरण: जैसे अगर हम महाभारत में युधिष्ठिर और उनके भाइयों का संयुक्त जीवन एक आदर्श जीवन था, वैसे ही पहले भारतीय परिवारों में सब लोग एक साथ रहा करते थे। लेकिन आज के समय में जब परिवारों में स्वतंत्रता और व्यक्तिगत स्पेस की परिकल्पना बढती चली जा रही है, तो इसके परिणामस्वरूप रिश्तों में दूरीयां और भावनात्मक मतभेद देखने को मिलता है। इस बदलाव का स्पष्ट अंतर उदाहरण शहरी जीवन एवं ग्रामीण जीवन में देखा जा सकता है, जहाँ काम के बटवारे के कारण परिवारों में संवाद और एक-दूसरे के लिए समय की कमी हो जाती है।
समाज में विवाह की अवधारणा भी आधुनिकता के प्रभाव में रूप बदलतीं जा रहीं हैं। जहां पहले विवाह समाजिक कर्तव्य और परिवार के बीच रिश्तों की मजबूती का प्रतीक हुआ करता था, वहीं अब यह एक व्यक्तिगत विकल्प और संबंधों के जटिल समीकरणों का परिणाम बनता जा रहा है। भारतीय समाज में विवाह को एक स्थायी बंधन अथवा सम्बन्ध माना जाता था, लेकिन अब तलाक की दरों में तेजी से वृद्धि हो रही है। यह सब रिश्तों के बीच की व्यावहारिकता, संवादहीनता, अपारदर्शिता और स्वतंत्रता के अत्यधिक प्रयोग का परिणाम है।
मिथकीय उदाहरण: महाभारत के युग की बात करें तो द्रौपदी और अर्जुन के संबंधों का वर्णन किया गया है, जिसमें धर्म, सम्मान और प्रेम का तत्व प्रमुख रहा था। लेकिन आधुनिक दाम्पत्य जीवन में, जब रिश्तों में समझौते और व्यक्तिगत इच्छाओं का टकराव हो रहा हो, तो संबंधों में स्थिरता की कमी हो ही जाती है। जैसे कि एक मेरे दोस्त की केस स्टडी में, एक युवा दंपत्ति के बीच आपसी समझ और संतुलन की कमी होती जा रही थी, जिसके कारण उनके संबंध तनावपूर्ण की अवस्था में पहुँच गए, और अंततः उन्हें तलाक के रस्ते पर जाना पड़ा।
आधुनिकता ने मित्रता और सामाजिक रिश्तों की भी नईं-नईं परिभाषाएँ प्रस्तुत की है। पहले जहां बीच के रिश्ते गहरे और विश्वासपूर्ण होते थे, वहीं अब सोशल मीडिया ने रिश्तों को उलझा कर रख दिया है। लोग एक-दूसरे के साथ ज्यादा समय न बिताकर, बल्कि डिजिटल स्पेस पर वर्चुअल रिश्तों में उलझते जा रहे हैं। सोशल मीडिया ने एक नई सामाजिक मान्यता विकसित की है, जिसमें मित्रता और संबंध असल जिंदगी के मुकाबले डिजिटल रूप में ज्यादा दिखाई देने लगी है। उदाहरण: एक केस स्टडी के अनुसार, युवा पीढ़ी के 60% लोग मानते हैं कि उनके पास असल मित्रों से ज्यादा ऑनलाइन दोस्त ज्यादा हैं। इससे रिश्तों में भावनात्मक गहराई की कमी होती जा रही है, और लोग व्यक्तिगत जुड़ाव से दूर होते जा रहे हैं। उदाहरण के तौर पर, इंस्टाग्राम या फेसबुक पर ‘फॉलोअर’ की संख्या बढ़ाना अब दोस्ती के बजाय एक सामाजिक प्रतिष्ठा का विषय बनता जा रहा है।
आधुनिकता के प्रभाव से दाम्पत्य रिश्तों में भी बदलाव आता जा रहा है। पहले जहां विवाह केवल एक पारिवारिक व्यवस्था थी, अब इसे एक व्यक्तिगत निर्णय के रूप में लिया जा रहा है। जीवनसाथी के चयन में अब ज्यादा स्वतंत्रता और विकल्प मौजूद हैं। लेकिन इसके साथ ही तलाक की दर भी बढ़तीं जा रहीं हैं, क्योंकि लोग अब रिश्तों में टिकने के बजाय जल्दी से अलग होने का निर्णय ले लेते हैं। उदाहरण के रूप में, बॉलीवुड की फिल्मों में भी हम देखते थे, जहां पहले विवाह को बहुत महत्व दिया जा रहा था, वहीं अब शादी के बाद भी अवेध सम्बन्ध दिखाए जा रहे हैं और फिर समझौता और तलाक जैसी चीजों को सामान्य रूप से दिखाया जा रहा है।
रिश्तों में भावनात्मक एवं सामाजिक जुड़ाव की कमी आज के समय की एक महत्वपूर्ण समस्या बन चुकी है। पहले जहां पर रिश्ते संजीदगी और समर्पण से जुड़े होते थे, वहीं अब उन्हें एक औपचारिकता और जरूरत के रूप दिया जाने लगा है। लोग अब अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को प्राथमिकता देते जा रहे हैं, और रिश्ते केवल एक उपकरण के रूप में उपयोग किए जा रहे हैं, जिनका उद्देश्य खुद की ज़रूरतों को पूरा करना होता जा रहा है। मिथकीय दृष्टिकोण: रामायण में राम और सीता का संबंध आदर्श दिखाया था, जिसमें एक-दूसरे के प्रति अपार श्रद्धा और विश्वास रहा था। लेकिन आज के समय में रिश्तों में यही भावनात्मक और मानसिक गहराई नहीं मिलती। इसके कारण, लोगों में रिश्तों की लंबी उम्र और स्थिरता की कमी हो रही है।
आजकल के व्यस्त जीवन में रिश्तों को समय देना एक चुनौती बनता जा रहा है। कामकाजी जीवन की भागदौड़, तकनीकी प्रगति और व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाएँ रिश्तों को उपेक्षित कर रहीं हैं। जब व्यक्ति अपने पेशेवर जीवन में इतना व्यस्त होता है कि वह अपने परिवार या प्रियजनों के लिए समय नहीं निकाल पा रहा है, तो रिश्तों में दरारें पड़ रहीं हैं। उदाहरण: एक केस स्टडी के मुताबिक, एक दंपत्ति का विवाह लगभग टूटने के कगार पर जा रहा था, क्योंकि दोनों पार्टनर्स ही अपने करियर पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और एक-दूसरे के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। आखिरकार, जब दोनों ने एक-दूसरे के लिए समय निकालने का निर्णय लिया और फिर उनका रिश्ता सुधरता चला गया।
सोशल मीडिया ने रिश्तों को एक नया रूप पदान किया है, जहाँ पर नए-नए सुझाव एवं समझदारी के उदाहरण भी देखने को मिल रहे हैं, लेकिन इसके साथ कई समस्याएँ भी उत्पन्न होती जा रहीं हैं। वर्चुअल रिश्तों में अक्सर वास्तविकता का अभाव देखा जाता है, जिससे लोग असली दुनिया में जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे से जुड़ने में असमर्थ होते जा रहे हैं। उदाहरण: एक अध्ययन के मुताबिक, 60% से 70% युवा लोग सोशल मीडिया पर अपनी गतिविधियाँ साझा करते हैं, लेकिन असल जिंदगी में वे एक-दूसरे से बहुत कम संवाद करते हैं। इससे रिश्तों में वास्तविक रिश्ते जैसी मिठास की कमी हो रही है, और मानसिक तनाव की स्थिति उत्पन्न होती चलीं जा रहीं हैं।
आधुनिकता ने स्वतंत्रता की परिभाषा को भी बदल कर रख दिया है। जबकि यह अच्छा है कि लोग अपनी स्वतंत्रता का सम्मान ख़ुद कर रहे हैं, परंतु कभी-कभी यह स्वतंत्रता रिश्तों में दरार डालती चली जाती है। रिश्तों में स्वायत्तता और व्यक्तिगत स्पेस की ज्यादा खोज से रिश्ते कमजोर होते जा रहे हैं। मिथकीय दृष्टिकोण: भारतीय महाकाव्यों में अक्सर यह दिखाया गया है कि रिश्ते अपने कर्तव्यों और जिम्मेदारियों के प्रति प्रतिबद्ध होते थे। उदाहरण के तौर पर, महाभारत में भी परिवार के हर एक सदस्य ने एक-दूसरे के लिए अपने कर्तव्यों का पालन किया था, लेकिन आजकल के रिश्ते स्वतंत्रता की ओर बढ़ते जा रहे हैं, जिससे आपसी सम्बन्ध की कमी हो रही है।
रिश्तों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए सबसे जरूरी बात है कि समय देना और एक-दूसरे की समझदारी को बढ़ाना है। इस दिशा में हमें सामाजिक, व्यक्तिगत जीवन और परिवार के लिए समय निकालने की आवश्यकता हमेशा बनी रहती है। संवाद सबसे महत्वपूर्ण तत्व संचार है, जिससे किसी भी रिश्ते में कभी भी समस्याएँ सुलझाई जा सकती हैं। यदि दंपत्ति या परिवार में संवाद की कमी हो रही हो, तो गलतफहमियाँ उत्पन्न होती जा रहीं हों। तो, रिश्तों के वातावरण में अच्छे और खुले संवाद की आवश्यकता है। रिश्तों में भावनात्मक गहराई और खुले संवाद की आवश्यकता है। यह न केवल आपसी समझ को बढ़ाता है, बल्कि रिश्तों की स्थिरता को भी सुनिश्चित करता है। रिश्तों में हमेशा समझौते की आवश्यकता बनी रहती है। सभी पक्षों को एक-दूसरे की व्यक्तिगत भावनाओं और विचारों का सम्मान करना चाहिए। समझौते हमेशा लचीलेपन को स्वीकार करते हैं।
आधुनिक जीवन में रिश्तों को स्वस्थ और मजबूत बनाए रखने के लिए हमें अपने जीवन के दृष्टिकोण और मिशन को स्पष्ट रूप से समझना होगा। यदि व्यक्ति अपने जीवन के उद्देश्य को समझता है, तो वह अपने रिश्तों में भी सामंजस्य बनाए रखने में सफल हो सकता है।
आधुनिकता ने रिश्तों के स्वरूप को बदल कर रख दिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकल लें कि हम इन रिश्तों को असफल मान लें। हमें इन बदलते हुए रिश्तों को समझने की जरूरत है और उन्हें सशक्त बनाने के लिए सही दृष्टिकोण अपनाते रहना चाहिए। अगर हम समय रहते, समझ, विवेक, संस्कार और सम्मान के साथ अपने रिश्तों को निभाएं, तो हम इस आधुनिक युग में भी अपने रिश्तों को और भी सार्थक संबंधों में ढाल सकते हैं।