वीरांगना झलकारी बाई की जयंती गोपाल किरन समाजसेवी संस्था द्वारा मनाई गई ।
दिल्ली , समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l गोपाल किरन समाजसेवी संस्था के अध्यक्ष श्रीप्रकाश सिंह निमराजे के नेतृत्व मै कार्यालय पर आयोजित की गई । उसके बाद सभी मेंबर ग्वालियर मैं आकाशवाणी के पास स्थित वीरांगना झलकारी बाई पार्क गए जहा सावजनिक रुपं से उनको फूलो की माला भेटकर उनको नमन किया गया ।
प्राप्त जानकारी के मुताबिक इस अवसर पर ग्वालियर की महापौर डॉक्टर शोभा सिकरवार, विधायक डॉक्टर सतीश सिकरवार, जी ने चढ़ाए इस दौरान क्षेत्रीय जागरूक समाजिक चिंतक, समाजिक कार्यकर्ता आदि उपस्थित रहे । कार्यालय पर सभी लोगो को महानायिका वीरांगना झलकारी बाई कोरी के जन्म दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं दी l
इस दौरान संक्षिप्त में बताया गया कि इनका पूरा नाम झलकारी बाई कोरी, जाति कोरी (बुनकर), जन्म 22 नवंबर, 1830 को ग्राम -भोजला (झांसी) उ०प्र० में हुआ और इनके पिता का नाम श्री सदोबा सिंह कोरी व मां का नाम श्रीमति जमुना बाई कोरी तथा पति का नाम श्री पूरन सिंह कोरी, और 04 अप्रैल, 1857 को वीरगति, रण में जाकर ललकारी थी, वह तो झांसी की झलकारी बाई थी । गोरों से लड़ना सिखा गई, है इतिहास में झलक रही, वह भारत की ही नारी थी ।
भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में बुन्देलखण्ड की सिंहनी महानायिका वीराँगना झलकारीबाई कोरी की भूमिका :-लॉर्ड डलहौजी की झाँसी राज्य हड़पने की नीति के चलते ब्रिटिशों ने निःसंतान रानी लक्ष्मीबाई को उनका उत्तराधिकारी गोद लेने की अनुमति नहीं दी । क्योंकि, वे ऐसा करके झाँसी राज्य को अपने नियंत्रण में लेना चाहते थे । हालांकि, ब्रिटिश की इस कार्रवाई के विरोध में रानी की सेना और झाँसी की प्रजा, रानी के साथ लामबंद हो गयी थी, और उन्होनें आत्म-समर्पण करने के बजाय ब्रिटिशों के खिलाफ हथियार उठाने का संकल्प ले लिया था ।
सन् 1857 ई० के दौरान रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी के किले के भीतर से ही अपनी सेना का नेतृत्व किया । ब्रिटिश और उनके स्थानीय सहयोगियों द्वारा किये गये कई हमलों को रानी ने नाकाम कर दिये थे । रानी के सेनानायकों में से एक “दूल्हे राव” ने उन्हें धोखा दिया और किले का एक संरक्षित द्वार ब्रिटिश सेना के लिए खोल दिया था ।
जब किले का पतन निश्चित हो गया तो झलकारीबाई कोरी ने रानी को कुछ सैनिकों के साथ किला छोड़कर निकल जाने की सलाह दी । झलकारी बाई कोरी ने मंत्रणा में कहा, कि रानी जी आप किले के पीछे से बाहर निकल जायें, मैं आपके परिवेश में रानी बनकर अँग्रेजों को रोकती हूँ । रानी घोड़े पर बैठ अपने कुछ विश्वस्त सैनिकों के साथ झाँसी के किले से दूर निकल गईं।
झलकारी बाई कोरी का पति पूरन सिंह कोरी किले की रक्षा करते हुए शहीद हो गये थे, मगर झलकारी बाई कोरी ने अपने पति की मृत्यु का शोक मनाये बिना, रानी की वेश-भूषा में ब्रिटिशों से सिंहनी की तरह युद्ध करते हुए अत्यधिक जन-क्षति पहुँचाना शुरू कर दिया ।
रानी की हमशक्ल झलकारी बाई कोरी को रानी लक्ष्मीबाई समझकर ब्रिटिश सेना ने पूरी ताकत झलकारी बाई कोरी के साथ युद्ध में केंद्रित कर दी, तदुपरांत, रानी लक्ष्मीबाई किले से भागने में सफल हो गई थी ।
इसी बीच में गद्दार सेनापति “दूल्हे राव” ने अँग्रेजों को बताया कि यह रानी लक्ष्मीबाई नहीं, बल्कि रानी के परिवेश में महिला सेनापति झलकारी बाई कोरी है । जिसके बाद झलकारीबाई कोरी ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज़ के शिविर में पहुँच गई । ब्रिटिश शिविर में पहुँचने पर उसने चिल्लाकर कहा, कि वह जनरल ह्यूग रोज़ से मिलना चाहती है ।
जनरल ह्यूग रोज़ जो उसे रानी ही समझ रहा था, ने “झलकारी बाई कोरी” से पूछा कि उसके साथ क्या किया जाना चाहिए ? तो झलकारी बाई कोरी ने दृढ़ता के साथ कहा, मुझे फाँसी दे दो ।
“जनरल ह्यूग रोज़” झलकारी बाई कोरी का साहस और उसकी नेतृत्व क्षमता से बहुत प्रभावित हुआ और झलकारीबाई कोरी को रिहा कर दिया । इसके विपरीत कुछ इतिहासकार मानते हैं, कि झलकारी बाई कोरी इस युद्ध के दौरान वीरगति को प्राप्त हुई ।
बुंदेलखंड में एक किंवदंती है, कि झलकारीबाई कोरी के इस उत्तर से “जनरल ह्यूग रोज़” दंग रह गया, तब उसने कहा कि यदि भारत की 1% महिलायें भी उसके जैसी हो जायें तो ब्रिटिशों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा ।