स्वामी गोपाल दास महाराज द्वारा समाजहित में उठाये गए मुद्दों पर हीरालाल नरानिया के सुझाव
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l संत हृदय नवनीत समाना’ या ‘संतों के मन रहत है, सबके हित की बात’ जैसे उद्धरण प्रसिद्ध हैं । श्री गुरूदेव स्वामी जीवाराम जी महाराज के अखिल भारतीय रामजन मंडल के स्वामी गोपाल दास महाराज निमेडा ने समाजहित में चिंतन-मंथन करते हुए कहा है कि जो समाज, परिवर्तन के साथ सामंजस्य नहीं बैठा पाता, वही समाज विकास पथ से पिछड़ जाता है । समाज में संत परम्परा बहुत पुरानी है ।
स्वामी गोपाल दास महाराज ने कहा कि आज हमने रूढ़िवादी परंपराओ को कुछ ज्यादा ही पनपा ली है, जिसके कारण समाज रूढ़िवादी परंपराओं में लिप्त है । अगर समाज इन रूढ़िवादी परंपराओ पर विचार करके कोई ठोस कदम नहीं उठाता, तो समाज एक गहरी खाई में समा जाएगा । जिसके लिए कहीं न कहीं हम सब जिम्मेदार होंगे, इसलिए समाज के लिए विचार करने योग्य निम्न बातें हैं :-
1. मृत्यु उपरांत परंपराओ के नाम पर समाज में जारी कुप्रथाओ के सुधार हेतु निर्णय लिए जाय l
2. जामणा प्रथा के नाम पर समाज में हो रही फिजूल खर्ची को रोकने के उपाय सुझाये जाय l
3. शादी-ब्याह व परावणी प्रथा में कैसे सुधार हो, जिससे रिश्ते भी मजबूत हो, रिश्ते टूटे भी नहीं, मतभेद भी ना हो,
4. आज समाज के पास शिक्षा तो है पर समाज में नैतिक संस्कारो का अभाव है, ऐसी स्थिति को कैसे सुधारा जाय
5. समाज की आर्थिक स्थिति कमजोर क्यों है? क्या कारण है और स्थिति को कैसे सुधारा जाय
6. राजनीति की दृष्टि से समाज क्यों पिछड़ रहा है? क्या कारण है? और कैसे सुधार हो?
उन्होंने आगे कहा कि हम से तो अच्छे हमारे बुजुर्ग थे जिन्होंने समाज को विकास पथ पर अग्रसर किया था, लेकिन हमने पिछले 20 सालों में बुजुर्गो की विरासत को आगे बढ़ाने में असफल रहे है l यदि आज समाज ने वर्तमान परिस्थितियों पर विचार नहीं किया तो आने वाली पीढ़ी हमे माफ़ नहीं करेगी l अखिल भारतीय रामजन मंडल की ओर से समाज के प्रबुद्ध लोगो से नम्र निवेदन है कि आपसी खींचतान और द्वेष छोड़कर उपरोक्त विचारणीय बातों पर विचार कर सुझाव रखे और समाज विकास हेतु कोई और बिंदु हो तो समाज के पटल पर रखे, सदेव केवल समाज के भले की सोचे ।
अखिल भारतीय रामजन मंडल के स्वामी गोपाल दास महाराज निमेडा की विचारणीय बिन्दुओ पर समाजसेवी हीरा लाल नरानिया द्वारा चिंतन कर सुझाव प्रस्तुत किये है :-
सामाजिक रूढ़िवादी, पाखंडवादी परंपराओं पर हमारे समाज के समाजसुधारक, संत महापुरुष, समाजसेवी तथा पूर्व के सभी आदरणीय महानुभावों ने अपने अपने विचार समय समय पर रखे हैं, जिनका कहीं न कहीं समाज पर बहुत बड़ा असर पड़ा था । धीरे धीरे उनके विचार कालांतर में कहीं लुप्त हो गए ।
आपके द्वारा समाज सुधार की दिशा में एक बहुत ही बढ़िया सोच है तथा उसके लिए क्या किया जा सकता है? उसी दिशा में मैं स्वयं के विचार यहां पर रख रहा हूँ । हो सकता है इनसे सभी सहमत नहीं हो लेकिन जब हम सभी सकारात्मक ऊर्जा से कुछ अच्छा सोच कर आगे बढ़ेंगे तो निश्चित ही कहीं कुछ अच्छा परिवर्तन जरूर हो सकता है। विचार या सुझाव यहां पर प्रस्तुत हैं:—
1–मृत्यु उपरांत कुप्रथा पर सुझाव : मृत्यु उपरांत कफ़न पर प्रतिबंध। सिर्फ निकटम एक ही रिश्तेदार द्वारा दिया जाना चाहिए ।अन्य सभी रिश्तेदारों के द्वारा नारियल ही ले जाया जाना चाहिए। गंगाजी या हरिद्वार जाने की प्रथा का सम्पूर्ण प्रतिबंध हो। बारहवें पर सिर्फ बहुत ही निकटम रिश्तेदारों को आमंत्रण तथा कपड़ों पर भी प्रतिबंध लगाने के साथ साथ रिश्तेदारों द्वारा सिर्फ स्वेच्छा से दी गई अधिकतम राशि रु.1100/- अथवा रु.2100/- स्वीकार की जाती है तो अनावश्यक खर्च से बचा जा सकता है।
2– टीका प्रथा पर सुझाव : वर को शगुन स्वरूप नारियल के साथ रु.101/- से रु.1101/- वस्त्र सहित व परिजनों को (माता पिता तथा वर की बहन अथवा बुआ) पहनने लायक कपड़े तथा अन्य सभी रिश्तेदारों को लिफाफे में सम्मानित राशि एक टॉवल के साथ दी जानी चाहिए। विवाह में दहेज प्रथा का पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए। विवाह उपरांत रिश्ते टूटने की संभावना नहीं के बराबर हो सकेगी
3–जामणा प्रथा पर सुझाव : जामणा में भी कपड़े व सम्मानित राशि उसी प्रकार से दिया जाना चाहिए, जिस प्रकार से टीका में दिया जाता है। किसी भी रिश्तेदार के मन को कहीं पर भी ठेस नहीं हो सकेगी। शादी ब्याह में भात तथा अन्य सभी उपलक्ष में पहरावणी भी यदि इसी प्रकार से की जा सकेगी तो किसी भी प्रकार की दरार पड़ नहीं सकेगी, रिश्ते कहीं पर भी नहीं टूट सकेंगे तथा किसी भी प्रकार की संबंधों में कटुता नहीं हो सकेगी। मुकलावा, गौना या सावा के दौरान दुल्हन की बड़ी बहन, बुआ, चाचा, ताऊ तथा मौसी के अलावा कपड़े देने की परम्परा पर भी प्रतिबंध लगाया जा सकता है। अन्य सभी के द्वारा नकदी राशि से सम्मान किया जाना चाहिए।
4–समाज के पास शिक्षा पर सुझाव : बच्चों की परिवार में भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए। सामूहिक रूप से लिये गए निर्णय निश्चित रूप से सही दिशा में होते हैं। बच्चों की शादी 20 से 25 वर्ष की उम्र में की जाने पर जिम्मेदारी सौंपी जाएगी तो निश्चित तौर पर संस्कारों में सुधार होगा।
5–राजनीतिक दृष्टि से समाज हेतु सुधार : RSS से जुड़े संगठन भले ही हमें वर्तमान में लाभ देते होंगे, किन्तु सत्य यही है कि लम्बे समय तक ये सभी संगठन हमारी जड़ें खत्म कर रहे हैं। इसलिए हमें इस संबंध में ऐसे राजनीतिक दलों के साथ में जुड़ना चाहिए जहां पर हमें हमारी पहचान मिल सके। सभी की एकजुटता होना अत्यंत ही महत्वपूर्ण हैं। हम सभी को भूतकाल में जो भी हुआ है उसके लिए मनन करना जरूरी है। समाज में आर्थिक रूप से सम्पन्न बहुत हैं लेकिन सब एकमत नहीं है। हर कोई सरपंच पद पर बनने की कोशिश में हमारे ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहे हैं। इससे अन्य समाज के व्यक्ति को ही फायदा होता है। एकता बनाना अत्यंत महत्वपूर्ण है।
6–समाज की कमजोर आर्थिक स्थिति पर सुधार : नियमित मदिरा सेवन करने से आर्थिक रूप से कमजोर होना स्वाभाविक है। अतः ऐसे लोगों को साथ में बैठने के लिए प्रतिबंध लगाने के लिए सामूहिक रूप से टीम तैयार कर प्रयास कर सकते हैं। कहते हैं कि चोर को मारने से अच्छा है चोर की मां को मारा जाता है तो चोर का जन्म ही नहीं होगा। कुरीतियों पर प्रतिबंध लगाया जाने से तथा पाखंडवादी सोच को बदलने से आर्थिक रूप से खर्चा नहीं होगा तो स्थिति में सुधार अवश्य ही होगा। अनावश्यक खर्चों से बचना चाहिए।
7–अब सोचिए कैसे सुधार हो : हम सभी आज जिस मुकाम पर हैं उसमें हमारी मेहनत मजदूरी तथा कुरीतियों का त्याग करने के कारण तथा फिजूल खर्ची को रोक कर आवश्यकता अनुसार वस्तुओं का संग्रहण से ही है न कि रूढ़िवादी, पाखंडवादी परंपराओं को अपनाने से है। जो भी परिवार आर्थिक रूप से किसी भी कारणवश कमजोर हैं तो उन्हें, एक संगठन बनाकर दान या सहयोग राशि देने से उन्हें सहयोग मिलेगा तथा बच्चों की अच्छी शिक्षा पर व्यय होगा तो निश्चित तौर पर आर्थिक रूप से उनमें भी संपन्नता जरूर हो सकेगी।
8–अब सोचिए कैसे सुधार हो—सुझाव : समाज के कुछ शुभचिंतक यह नहीं चाहते हैं कि कोई भी परिवार आगे बढ़े इसलिए इसमें हम सभी की कहीं न कहीं बराबर भागीदारी है, क्योंकि यह तो सदियों से चली आ रही सोच है, क्योंकि ऊपर चढ़ने वाले का पैर तो पकड़ते हैं, लेकिन जब ऊपर वाला व्यक्ति अगर सभी प्रकार से सक्षम है तो वह निश्चित ही ऊपर जरूर जाएगा। हमारी आदतें इन सब के लिए कहीं न कहीं किसी न किसी रूप में जिम्मेदार हैं।
9–अपने से तो अच्छे—सुझाव : जब तक हम सभी हमारी सोच को सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण नहीं करेंगे तो कुप्रथाओं को कभी भी नहीं छोड़ सकते हैं। अतः कुप्रथाओं का त्याग, पाखण्डवाद से दूरी, गलत आचरण का त्याग करना ही हमारे समाज को एक नई दिशा दे सकते हैं।
10–आप तथा हम सब—-सुझाव : अखिल भारतीय रैगर महा सभा के सभी पदाधिकारियों द्वारा सामूहिक रूप से संकल्प लिया जाना चाहिए क्योंकि उनके द्वारा लिया गया संकल्प ही समाज को एक नई दिशा दे सकता है और यदि उनके द्वारा इस प्रकार के कार्य किये जाते हैं जो रूढ़िवादी परंपरा में लिप्त हैं और पाखंडवादी सोच से परिपूर्ण हैं तो स्थिति में सुधार की गुंजाइश कहीं भी नजर नहीं आ सकेगी। हो सकता है आप मेरे विचारों से सहमत न हों फिर भी हम आपके विचारों के लिए सदैव कद्र करते हैं।