Wednesday 04 December 2024 11:43 AM
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संगठन को चलाने की एक प्रक्रिया और सिद्धांत होते है जिसमें नियम कायदे क़ानून भी होते है

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l  कर्नल दुर्गालाल रैगर ने सोशल मिडिया के प्लेटफ़ॉर्म पर समाजहित में अपने ज़बरदस्त विचार समाज के लोगो से साझा किये कि : अखिल भारतीय रेगर महासभा के नाम पर कोई भी पैसा इकठ्ठा किया जाता है तो पहले उस पैसे को महासभा के खाते में जमा किया जाना चाहिए था/चाहिए…यदि ऐसा नहीं किया गया/होता है तो इन पर महासभा के द्वारा फौजदारी मुकदमा दायर किया जाना चाहिए…..और यदि महासभा ऐसा नहीं करती है तो उस पर भी दानदाताओं द्वारा मुकदमे में पार्टी बनाकर केस बनाया जा सकता है खास करके जिन जिन महानुभवों का लेटर हेड पर नाम अंकित है… इतिहास में पहली बार किसी पदाधिकारी ने सामाजिक संगठन के हिसाब किताब में हो रही धांधली के खिलाफ अपनी आवाज़ बुलंद की और दोषियों के खिलाफ क़ानूनी कार्यवाही की मांग की है l

कर्नल दुर्गालाल रैगर साहब के वक्तव्य पर समाजसेवी बाबूलाल बारोलिया ने सोशल मिडिया के प्लेटफ़ॉर्म पर अपने निष्पक्ष विचारो से समाजहित में महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया प्रकट की :-

समाजसेवी बाबूलाल बारोलिया

कर्नल साहब ने समाज की महासभा में एकत्रित किये जाने वाली राशि के सम्बन्ध में जो विचार किये है वे समाज हित में है अतः सभी को इनके विचारों से सहमत होना चाहिए | इस विषय पर मेरा निवेदन यह है कि संगठन किसी भी उद्धेश्य के लिए बना हो उसको सुचारू रूप से चलाने के लिए धन की आवश्यकता होती ही है और यह धन संगठन विभिन्न स्त्रोतों से अर्जित करता है | धनार्जन के बाद विभिन्न प्रकार के आयोजनों में खर्च भी करना पड़ता है | कई संगठन सोसाइटी एक्ट में पंजीकृत भी होते है और कुछ बिना पंजीकरण के भी संगठन चला रहे है जैसा भी है एक संगठन व्यक्तियों के समूह से ही बनता है |

अतः एक संगठन को चलाने की एक प्रक्रिया और सिद्धांत होते है जिसमें नियम कायदे क़ानून भी होते है जिसके दायरे में रहकर कार्यकर्ता कार्य करते है | संगठन के प्रति लोगों का विश्वास और पारदर्शिता रखने के लिए कार्यकर्ताओं को सच्चाई, ईमानदारी और निःस्वार्थ भाव से कार्य करना आवश्यक है | वर्तमान में किसी भी संगठन/समिति में सभी पदाधिकारी शिक्षित लोग ही आगे आते है तथा अधिकतर सरकारी सेवा में से सेवानिवृत होते है जो विभिन्न उच्च प्रशासनिक पदों पर रह चुके होते है इसके अलावा कोई, वकील, डॉक्टर, इंजिनियर, उद्योगपति, व्यौपारी आदि होते है जो यह अच्छी तरह से जानते है कि किसी संगठन/समितियों के लिए जनता से एकत्रित धन राशियों के आय व्यय का लेखा जोखा कैसे रखा जाता है इसके बाद भी अगर कोई जानबूझकर सार्वजनिक धनराशी का विधिवत रूप से आय व्यय का हिसाब नहीं रखते है तो ये एक तरह सार्वजनित धन का दुरूपयोग ही कहलायेगा |

संगठन में आय व्यय का हिसाब रखने के लिए कोषाध्यक्ष का पद होता है, जिसका सर्व सम्मति से चुनाव किया जाता है | कोषाध्यक्ष का निम्न कर्तव्य होता है :

1. समिति/संगठन को समस्त प्राप्तियों की रसीद देना,तथा व्यय की गयी राशि के  बिल, वाउचर्स, रसीदों आदि को प्राप्त कर महीनावार केशबुक में  हिसाब रखना होता है | हर माह केश बुक में आय व्यय पश्चात इतिशेष निकाला जाता है और अगले माह अग्रेषित किया जाता है | हर माह के अंत में इतिशेष राशि के नीचे सचिव/अध्यक्ष/ कोषाध्यक्ष के बतौर सत्यापन के हस्ताक्षर होते है|

2. संगठन /समिति में जो भी राशि प्राप्त होती है उसको उसी दिन या अगले दिन बैंक खाते में जमा करवाना होता है | यदि बैंक खाता नहीं होता है तो सयुंक्त अभिरक्षा (सचिव,अध्यक्ष और कोषाध्यक्ष) में एक बॉक्स में एकत्रित राशि रखी जाती है तथा उस बॉक्स पर संयुक्त अभिरक्षकों के हस्ताक्षर होते है |

3. संगठन/समिति के अध्यक्ष / सचिव या कार्यकारिणी द्वारा स्वीकृत व्यय करना,और उसका अक्षरश: हिसाब रखना,और कार्यकारिणी के समक्ष प्रस्तुत करना | आय व्यय का हिसाब प्रत्येक तिथिवार रखा आना जाना है | बिना कार्यकारिणी की स्वीकृति के कोई व्यय नहीं किया जाना है |

4. व्यय की गयी राशि के प्रत्येक बिलों को सचिव/अध्यक्ष/कोषाध्यक्ष द्वारा सत्यापित होना आवश्यक है तथा प्रत्येक वाउचर क्रमवार सरंक्षित पत्रावली में सुरक्षित रखना है |

5. वर्ष में एक बार संगठन/समिति द्वारा नामित अंकेक्षक से अंकेक्षण करवाकर कार्यकारिणी से अनुमोदित करवाना होता है तथा अंतिम अनुमोदन आम सभा में करवाना होता है |

6. अगर कोई संगठन/समिति सोसाइटी एक्ट १८६० में पंजीकृत है तो आय व्यय का लेखा जोखा रजिस्ट्रार सहकारी समिति से भी अंकेक्षित करवाया जा सकता है |

7. अंशदान/दान/सहायता राशि एकत्रित करने के लिए संगठन/समिति के नाम से रसीद बुक छपवाई जाती है जिसमें अनुक्रमांक होते है, अतः इनका एक स्टॉक रजिस्टर रखा जाना चाहिए | जिसको भी राशी एकत्रित करने के लिए रसीद बुक दी जाती है तो स्टॉक रजिस्टर में रसीद बुक देने और वापस लेने के हस्ताक्षर करवाने चाहिए |

उपरोक्त प्रक्रिया वैसे सभी शिक्षित लोगों की जानकारी में होगा ही फिर भी मैंने सिर्फ जानकारी के लिए सुझाव दिया है कोई समाज बंधू माने या नहीं माने अपनी अपनी मर्जी क्योंकि सभी ने अपने सेवाकाल में सरकारी दफ्तरों सरकारी खर्च का अंकेक्षण करवाया ही होगा लेकिन संगठन/समितियों में आने के बाद यह सोचकर हिसाब किताब रखना उचित नहीं समझते है कि संगठन को कौनसे सरकारी प्रक्रिया से चलाना है और आय व्यय का हिसाब नहीं भी रखेंगे तो कौन पूछनेवाला है अतः अपनी इच्छानुसार लोगों से दान/अंशदान/सहायता राशि के नाम से पैसा एकत्रित करो और अपने तरीके से खर्च करो जबकि आम जन का पैसा भी उसी तरह खर्च करना चाहिए जैसे अपने घर को चलाने के लिए खर्च करते है |

कोई भी संगठन टाइम पास या मौज  मस्ती के लिए नहीं होता है बल्कि लोगों के कल्याण और समाज सुधार और विकास के लिए होते है | आजकल समाज के लोग भी काफी शिक्षित और समझदार है अतः संगठन के प्रति  विश्वास जानने के लिए संगठन से सवाल पूछ सकते है और पूछना भी चाहिए क्योंकि संगठन के नाम से अर्जित धन सार्वजनिक होता है ना की किसी व्यक्ति विशेष का | इस क्रम में मैंने पूर्व में भी सामजिक ग्रुप में आय व्यय के लेखा जोखा को प्रतिवर्ष अंकेक्षित विवरण सार्वजनिक रूप से प्रस्तुत करना चाहिए ताकि समाज के लोगों में संगठन के प्रति विश्वास और प्रतिबद्धता कायम रह सके| धन्यवाद |

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