व्यक्ति बड़ा है अथवा समाज ?
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l प्राचीन काल से ही समाज के प्रबुद्ध जनों के समक्ष एक प्रश्न विचारणीय रहा है कि व्यक्ति बड़ा है अथवा समाज ? कुछ विद्वान् लोग समाज की अपेक्षा व्यक्ति के व्यक्तित्व पर बल देते हैं, तो कुछ समाज के हित के समक्ष व्यक्ति को बिलकुल महत्वहीन मानते हुए उसे समाज की उन्नति के लिए बलिदान तक कर देने के पक्ष में हैं । इस वाद-विवाद के आधार पर व्यक्तिगत तथा सामाजिक उद्देश्यों का सर्जन हुआ है । प्राय: सभी लोग इन्ही दोनों उद्देश्यों में से किसी एक उदेश्य के पक्ष में बल देते हैं । अब प्रश्न यह उठता है कि इन दोनों उद्देशों में समन्वय स्थापित किया जा सकता है अथवा नहीं ? यदि अन्तर केवल बल देने का ही हो तो इन दोनों उद्देश्यों के बीच समन्वय स्थापित करने में कोई कठिनाई नहीं होगी । परन्तु इसके लिए हमें निष्पक्ष रूप से इन दोनों उद्देश्यों के संकुचित तथा व्यापक रूपों का अलग-अलग अध्ययन करके यह देखना होगा कि इन दोनों उद्देश्यों में कोई वास्तविक विरोध है अथवा केवल बल देने का अन्तर है ।
यदि ध्यान से देखा जाये तो पता चलेगा कि व्यक्तिगत उद्देश्य कोई नया उद्देश्य नहीं है । प्राचीनकाल से समाज की अपेक्षा व्यक्ति को बड़ा मानते हैं । लोगो का मानना है कि व्यक्तियों के बिना समाज की कोरी कल्पना है । व्यक्तियों ने ही मिलकर अपने हितों की रक्षा करने के लिए समाज की रचना की है तथा समय-समय पर संस्कृति, सभ्यता एवं विज्ञान के क्षेत्रों में भी अपना-अपना योगदान दिया है । इस योगदान के फलस्वरूप ही सामाजिक प्रगति का क्षेत्र बड़ा और बढ़ता चला जा रहा है । अत: व्यक्तिगत रुचियों, क्षमताओं तथा विशेषताओं का विकास करना चाहिये । इसलिए लोगो की धारणा है कि परिवार, समाज तथा राज्य व्यक्तिगत शक्तियों को विकसित करने के लिए ही स्थापित किया गया है । इस दृष्टि से प्रत्येक राज्य तथा सामाजिक संस्था का कर्त्तव्य है कि वह व्यक्ति के जीवन को अधिक से अधिक अच्छा, सम्पन्न तथा सुखी एवं पूर्ण बनाये ।
प्रत्येक व्यक्ति एक विशिष्ट स्वाभाव को लेकर जन्म लेता है । हम समाज में बिना सोचे-समझे भिन्न-भिन्न विचारो व रुचियों वाले व्यक्तियों को एक ही प्रकार का समझ कर व्यवहार करते हैं । इस विषय पर पूर्व राजस्थान प्रदेशाध्यक्ष अखिल भारतीय रैगर महासंघ व समाजसेवी हनुमान आजाद का विचार है कि अगर समाज में 100 में से 99 लोगो की राय एक है और केवल एक की राय अलग है तो भी कम से कम उसकी बात को सुनना जरूर चाहिए । इसकी दो वजह है । पहली वजह नैतिकता व इंसानियत है । क्योंकि जितना इंसान मैं हूँ उतना ही इंसान वह भी है । जितना मैं सोच पाता हूँ । उतना वह भी सोच पाता है ।
दूसरी वजह यह है कि कोई भी मौलिक विचार पहली बार एक ही व्यक्ति को आता है और जो समाज मौलिक विचारो को दबाने की कोशिश करता है तो इसका मतलब आप भावी क्रांति को दबा रहे है । जिसका खामियाजा पूरे समाज को तथा आने वाली पीढ़ियों को उठाना पड़ता है ।
हर चीज का एक वातावरण होता है जैसे दुनिया के बड़े बिजनेसमैन अमेरिका से ही अधिक निकलते है क्योंकि वहाँ की सरकारें इसको बढ़ावा देती है, सपोर्ट करती है लेकिन इंडिया में हजारों लाखों लोगो की भीड़ में से कोई एक बड़ी मुश्किल से उन हजारों लाखों की भीड़ से अलग सोच पाता है और उसको भी दबाने का भरपूर प्रयास किया जाता है । उसका मजाक बनाया जाता है । उसको नीचा दिखाने की कोशिशें की जाती है । नजरंदाज किया जाता है । लेकिन इन सबको जो सह पाता है वही समाज के लिए अलग थोड़ा बहुत कुछ कर पाता है, अन्यथा अधिकतर सामाजिक कार्यकर्ता समाज की असहयोग की भावना से आत्मीय रूप से आहत होकर टूट जाता है ।
व्यक्तिगत विचार से ही समाज की उन्नति हो सकती है । आधुनिक मनोविज्ञानिक प्रयोगों ने यह सिद्ध कर दिया है कि प्रत्येक व्यक्ति एक दुसरे से शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा संवेगात्मक दृष्टी से भिन्न होता है । यह भिन्नता रुचियों, शक्तियों, विचारों तथा कार्य करने की क्षमता में भी होती है । यही नहीं, प्रत्येक व्यक्ति की सामान्य बुद्धि, जीवन के आदर्श तथा कार्य करने की गति से भी महान अन्तर होता है । किसी व्यक्ति की बुद्धि मन्द होती है, तो किसी की प्रखर । ऐसे ही एक व्यक्ति शारीरिक कार्य करने में रूचि लेता है तो दूसरा मानसिक कार्य को करना अधिक पसन्द करता है । इसी प्रकार कोई व्यक्ति किसी अमुक कार्य को जल्दी समाप्त कर लेता है तो उसी कार्य को दूसरा व्यक्ति देरी से कर पाता है । इस प्रकार हम देखते हैं की कोई से दो व्यक्ति प्रत्येक दृष्टि से एक से नहीं हो सकते ।
अत: समाज में सभी अपने मानवीय जीवन में अपनी योग्यतानुसार एक नागरिक के रूप में समाज के विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय रूप से भाग लेकर अपना-अपना महत्वपूर्ण योगदान करें और आपस में एक दुसरे का सम्मान करें, तों इससे व्यक्ति तथा समाज दोनों का कल्याण सम्भव है । व्यक्ति और समाज एक दुसरे के पूरक है l