Thursday 12 December 2024 6:16 PM
Samajhitexpressउत्तर प्रदेशगुजरातचंडीगढ़जयपुरताजा खबरेंनई दिल्लीपंजाबमहाराष्ट्रराजस्थान

रैगर समाज ने समर्पण भावना से जुड़े निष्काम सरोकारों की वजह से शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है

रैगर समाज शिक्षित होने पर भी समाज में एकता का अभाव क्यों है ?

दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l  रैगर समाज के सभी संत महापुरुषों, समाज सुधारको व समाजसेवियों की विराट सोच, त्याग और समर्पण भावना से जुड़े निष्काम सरोकारों की वजह से समाज ने शिक्षा के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति की है । समाज के लोगों की सामाजहित की सोच और उदार आर्थिक सहयोग से ही समाज के बड़े-बड़े छात्रावास और धर्मशालाओ का निर्माण हुआ है । छात्रावास में रहकर समाज के होनहार छात्र अपनी सम्पूर्ण मानसिक और शारीरिक शक्ति से पूर्ण मनोवेग के साथ शिक्षण की तैयारी कर उच्च शिक्षा प्राप्त कर सबसे ज्यादा समाज की होनहार प्रतिभाओ ने राजकीय सेवाओ में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई l जैसे शिक्षा,  मेडिकल, तकनीकी, बैंकिंग, राजस्व और प्रशासनिक सेवाओं के क्षेत्र में समाज की प्रतिभाओ के द्वारा उपस्थिति दर्ज कराने में समाज के छात्रावास द्वारा निशुल्क/सस्ती आवासीय व्यवस्था की महत्वपूर्ण भूमिका रही है l

शिक्षा के विकास से समाज के लोगो में जागरूकता बढती है और जागरूकता से बौद्धिक क्षमता में अभिवृद्धि होती है । जिससे समाज के लोग किसी के बहकावे में नहीं आकर समय पर उचित-अनुचित, सही-गलत और आशावादी-निराशावादी दृष्टिकोण के बारें में सकारत्मक निर्णय लेने में सक्षम होता है l

अब विचारणीय विषय यह है कि आज हम किस मुकाम पर है? समाज में शिक्षा के प्रचार-प्रसार से समाज के लोगों की समझ जितनी व्यापक होनी चाहिए, उतनी हुई नही है । सामाजिक एकता को जिस तरह से मजबूती मिलनी चाहिए थी, वह कहीं भी दिखाई नही दे रही है । यह समाज के लोगो के लिए चिंता का विषय है ।

आजादी से पूर्व हमारे पूर्वज भले ही अनपढ़-निरक्षर थे, लेकिन वे लोग समाज को प्राथमिकता देते हुए ईमानदारी से समाजहित की बात को उचित ढंग से रखते थे । उन लोगो की समाज के प्रति विशाल सहृदयता और सकारात्मक सोच को हम बारम्बार वंदन करते है । वे अपनी आदर्श सोच-समझ से सामाजिक एकता को बड़ी दरियादिली से निभा कर मजबूती प्रदान किया करते थे । परिवार और समाज में वे लोग आपसी प्रेम व भाईचारे की मजबूत डोर से बंधे रहते थे । उनके रिश्तो में माधुर्य-सौम्यता व आत्मिक बंधन देखने को मिलता था l जो वर्तमान दौर में धीरे-धीरे लुप्त हो रहा है ।

सबसे बड़ी बात कि हमारे पूर्वज अनपढ़-निरक्षर होते हुए भी सामाजिक एकता बनाये रखने में सफल रहे और हम शिक्षित होते हुए भी सामाजिक एकता बरक़रार नहीं रख पा रहे l आखिर इसकी वजह क्या है? इसके पीछे कुछ न कुछ कारण तो जरुर है, इन कारणों को अंतरंग गहराइयों से चिंतन और मंथन करे तो हम पायेंगे कि समाज के अधिकांश शिक्षित लोगो में ज्ञान के अहंकारवश अपने आपको समाज में श्रेष्ठ और सर्वे-सर्वा मानने की प्रवृति बलवती होती है । यह अहंकार अनैतिक नहीं है, लेकिन  यह अहंकार प्रवृति तब समाजहित में नहीं होती जब वे लोग पितातुल्य अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ताओ के सकारात्मक समाज सुधार के प्रयासों में भी कमियां ढूंढने लग जाते है और सामाज सेवा के कार्यो से जुड़े लोगों के उत्साह-उमंग और उनके जोश को निरुत्साहित करने में कोई कोर कसर नही छोड़ते है । संगठन में जब कोई सामाजिक कार्यकर्ता मौखिक या पत्र व्यवहार के द्वारा सवाल जवाब करता है तो उसे जवाब नहीं देकर निरुत्साहित करते है l इस तरह समाज के शिक्षित लोगो में ईर्ष्या-राग-द्वेष व उच्च नीच का भाव देखने को मिलता है, तो उस समाज में सामाजिक एकता को मजबूती प्रदान कैसे हो सकती है?

भगवान बुद्ध ने राजपाट छोड़कर दुखी लोगों के दुख दूर करने में अपना जीवन लगा दिया, तो नानक ने सांसारिकता का त्याग करके महानता अर्जित की । वहीं त्यागमूर्ति स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी ने अपना सम्पूर्ण जीवन समाज उत्थान में लगा दिया । करुणाभाव के कारण ही मनुष्य को दूसरे का दर्द समझ में आता है और वह उसे दूर करने की कोशिश करता है । करुणा समाज में सुरक्षा और सौहार्द लाती है, क्योंकि इसकी मौजूदगी में ही लोगो में दूसरों का भला करने की भावना निहित होती है । करुणा ही मनुष्य को मनुष्य के करीब लाकर सामाजिक एकता स्थापित करती है l प्रेम और करुणा ही सामाजिक जीवन जीने का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है ।

समाज के प्रबुद्ध लोगो के मतानुसार समाज के शिक्षित लोगो का सर्वप्रथम कर्तव्य यह होना चाहिए कि वे समाज के प्रति निष्ठा भाव रखते हुए समाज के लोगो के साथ समानता का सार्थक परिचय देवे । हम सबका दायित्व बनता है कि हम सामाज सेवा के कार्यों से जुड़े महानुभावो के प्रति सही सोच रखे । जिन लोगों ने भी समाज के उद्धार के लिए अपना मिशन खड़ा किया हो, उनकी मुक्तकंठ से सराहना करे, जहाँ उचित लगे उन्हें अपना मार्गदर्शन देवे । सामाज सेवा के द्वारा विकास का दीया कही भी जले, वह समाज मे उजियारा ही करेगा, ऐसी सोच रखे । किसी व्यक्ति विशेष की टीका-टिप्पणी द्वारा निंदा करने में अपनी ऊर्जा नष्ट करने के बजाय पहले उस व्यक्ति की जमीनी हकीकत को जरूर देखें और जहां तक हो सके उससे व्यक्तिगत संवाद करे । समाज को अपनी ओर से कुछ न कुछ सकारात्मक देने का सार्थक प्रयास करे । आपका सकारात्मक सार्थक प्रयास निश्चित ही समाज को नई दिशा प्रदान करने में योगदान करेगा । समाज के उद्धार के लिए हम सबको विशाल सहृदयता और सकारात्मक दृष्टिकोण से ईमानदारी से अपना सर्वोत्तम कर्म करना होगा । हम अपने सामाज की एकता के लिए सकारात्मक दृष्टिकोण रखे, एक दूसरे से उलझने के बजाय अपने अनुभव के आधार पर आदर्श विचारों से मिल बैठकर समस्या का समाधान करे, समाज को हर मोर्चे पर विजयी करने के लिए त्याग और समर्पण की भावना रखे और समाज के उद्धार के लिए अपना योगदान करे ।

शिक्षित समाज का अपना साहित्य ही समाज का सुनहरा दर्पण होता है । जिस समाज का अपना साहित्य समृद्ध है वह समाज उतना ही श्रेष्ठ है । रैगर समाज को साहित्य की दृष्टि से समृद्ध करने के लिए शिक्षाविदों और प्रबुद्ध लोगो को अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिए । समाज की जो भी शैक्षणिक,सामाजिक या आध्यात्मिक साप्ताहिक, मासिक या त्रैमासिक पत्रिकाएं प्रकाशित होती है, हम सब उनके आजीवन पाठक बने और अपने अनुभव के आधार पर आदर्श विचारों से युक्त आलेख लिखे, जिससे समान की युवा पीढ़ी लाभान्वित हो सके । प्रबुद्ध शिक्षाविद अपनी ओर से रचनाये लिखे । समाज स्तर पर साहित्यकारों को प्रोत्साहित करने के लिए सार्थक प्रयास हो । ऐसे सकारात्मक प्रयासों से सामाज में एकता के सुदृढ़ीकरण को नया बल प्रदान होगा ।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Check Also
Close