Thursday 01 May 2025 3:38 AM
आर्टिकल

बिन माँ के,,,,,,,,अब कौन पोंछे रे आँसू?

अब कौन पोंछे रे आँसू?

माँ हुई स्वर्गवासी, चारो ओर है उदासी,

कौन पोंछे रे आँसू?

याद आती है लोरी, तनती है सांसो की डोरी l

आँख भर जाती हैं मेरी, यादे शेष है तेरी

कौन पोंछे रे आँसू?

माँ हुई स्वर्गवासी, चारो ओर है उदासी,

मां की गोद बैकुंठ धाम, धूप सर्दी या हो घाम l

मां है संगीत मीठा, जब जब भी मैं रूठा!

थपकी दे सुलाती !

यादें रोज रुलाती! सवाल सौ सौ करती तू,

सबके बाद खाती तू! उंगली पकड़ चलाती तू!

अब कौन पूछता है अब कौन रोकता है अब कौन टोकता है

अब कौन पोंछे रे आंसू

मां हुई स्वर्गवासी, चारों ओर है उदासी

 बोझिल सा दिन मेरा, रात यूं ही कट जाती!

आंख मेरी भर जाती, दो बूंद फिर गिर जाती,

 आंख राह तकती है! पर तू कहां दिखती है!

कौन पोंछे रे आंसू

मां हुई स्वर्गवासी चारों ओर है उदासी!

घर आंगन उदास है, सब कुछ मेरे पास है,

कहने को सब खास है, पर कोई ना पास है,

मिल जाए तू कहीं, बस यही आस है,

ना मन में सुकून मां, जिंदगी उदास है!

अब कौन पोंछे रे आंसू?

मां हुई स्वर्गवासी, चारों ओर है उदासी l

पीड़ाओं का डेरा है मोन का बसेरा है,

दामन जबसे है छुटा जहान मेरा है लूटा,

जग है ये सारा रूठा सुख है ये सारा झूठा,

कौन पोंछे रे आंसू,

मां हुई स्वर्गवासी चारों ओर है उदासी l

याद तेरी आती है! सूनी ये प्रभाती है!

ना याद तेरी जाती है! याद माँ जब आती है!

दो बूंद बस गिर जाती है!

अब कौन पोंछे रे आंसू

मां हुई स्वर्गवासी, चारों ओर है उदासी

झंझावतों से घिर गई जिंदगी भी रुक गई!

जबसे है तू गई जिजीविषा मर गई!

याद आता है बचपन! वो कागज की कश्ती

वो छोटी सी बस्ती! वो वह दोपहर की मस्तियाँ

वह मीठी सी गालियाँ वह दूध भरी प्यालियाँ 

अब कहां वो बात है! रूदन ही रात है !

अब कौन पोंछे रे आंसू?

 मां हुई स्वर्गवासी, चारों ओर है उदासी

निशब्द में आज हूँ! बिन सुरों का साज हूँ!

आंसुओं का ताज हूं खाली बस खाली मन अस्त होता है तन!

चल रही है पवन! आती थी जब भी होली !

सजती थी माथे रोली! पूजती थी ढूंढ मेरा!

सुखी रहे बेटा मेरा! तेरी वो आशीष अब याद आती है!

जब भी याद आती है, दो बूंद बस गिर जाती है !

अब कौन राह तकता है! अब कौन फिक्र करता है!

अब कौन थपकी देता है!

थोड़ा और खा ले, अब कौन मुझको कहता है!

तुलसी का चौरा भी रोता सा लगता है! चौका रसोई का सूना सा लगता है!

बिन तेरे मां जीवन ये, बोझिल सा लगता है!

मौसम कोई भी हो, पतझड़ सा लगता है!

-✍ कवि महावीर प्रसाद वैष्णव-

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