सामाजिक सम्मेलन एवं सम्मान समारोह से समाज में कितनी जागृति, शिक्षा व संगठन की भावना पैदा होती है?
- युवा पीढ़ी और समाज की प्रतिभाएं इन समारोहों व सम्मेलनों से क्या सीख कर जाती हैं?
- सुरेश कुमार कनवाड़िया, श्रीगंगानगर
आजकल सर्व समाज में एक तरफ अपनी ताकत दिखाने को जातीय सम्मेलनों और प्रतिभा सम्मान समारोहों की बाढ़ सी आई हुई है, वहीं दूसरी तरफ सब लोग घर परिवार के सदस्यों, भाईबन्धों, रिश्तेदारों और अपने ही समुदाय के लोगों से मेल मिलाप और शुद्ध सामंजस्य नहीं बैठा पा रहे हैं । सब तरफ अलग विचारधारा और आपसी खींचतान लगी रहती है । कोई किसी से कहीं भी तालमेल बैठाने को तैयार नजर नहीं आता । ऐसे में यह सभी कार्यक्रम मात्र औपचारिकता पूरी करने के अलावा कुछ नहीं रह जाते ।
इन सम्मेलनों और समारोहों से समाज में कितनी जागृति, शिक्षा व संगठन की भावना पैदा होती है, कुछ कहा नहीं जा सकता । युवा पीढ़ी और समाज की प्रतिभाएं भी इन समारोहों व सम्मेलनों से क्या सीख कर जाती हैं, इसका परिणाम भी भविष्य के गर्भ में है । कुछ लोगों को समाज हित में कार्य करने की मानसिक संतुष्टि, कुछ को भीड़ में नेता की पहचान बनाने या नेता बनने और कहीं किसी को लोगों से इकट्ठा किए हुए धन का निजी कार्यों में सदुपयोग का अवसर भी प्राप्त हो जाता है ।
राजनीतिक लाभ के लिए प्रांतीय एवं राष्ट्रीय संगठनों द्वारा भीड़ का प्रदर्शन एक बात है । सामाजिक विकास, विचारधारा व व्यवहार में बदलाव,परम्पराओं,मान्यताओं व रीति रिवाजों में एकरूपता न होने की समस्याएं समाज में गहरी जमी हैं । इनका समाधान इन सम्मेलनों में शायद ही होता है । समाज में नेताओं की छवि बनाने के लिए ऐसे सम्मेलनों की बजाय धरातल या निचले स्तर से प्रारंभ की गई सेवा ही अधिक प्रासांगिक होती है । जिसमें सभी अपनी परिस्थितियोंवश या अन्य कारणों से अक्सर लोग समर्थ नहीं होते । ऐसे में जाति पंचायतों व महासभाओं के सम्मेलनों का रास्ता अपनाना पड़ता है । जो कि लाभ के स्थान पर समाज के लिए धन और श्रम के अपव्यय का ही जरिया बनता है । क्योंकि ऐसे में समाज की सेवा के बजाय समाज के कंधों पर चढ़कर उपलब्धि प्राप्त करना ही उद्देश्य रहता है । यही तरीका आजकल आसान व उचित माना जाने लगा है ।
अतिश्योक्ति हो तो क्षमा चाहूंगा । ????????
सुरेश कुमार कनवाड़िया, श्रीगंगानगर
(यह लेख सामाजिक साहित्य परिषद् की वाल से लिया गया)