समाज को एकता के सूत्र में पिरोने के सुझाव
बाबूलाल बारोलिया (सेवानिवृत), अजमेर
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस l व्हाट्सएप्प यूनिवर्सिटी के विद्यार्थी को आज ज्ञान बांटने का फिर एक विचार आया कि बाबा साहब ने कहा था कि “सामाजिक एकता के बिना राजनैतिक लाभ अर्थहीन है” यह हम सब जानते है परन्तु वर्तमान समाज की परिस्थितियां जो मुझे व्हाट्सएप्प से ही जानकारी मिल पा रही है जिसे देखकर पढ़कर ऐसा लग रहा है कि हम किस दिशा में जा रहे है, सर्व विदित है। जिस तरह खेत मे बीज लगाते ही बरसात हो जाये तो वह बहता पानी बीज को पौधा बनने से पहले ही उसे बहा ले जाता है। आज हम समाज में यही तो कर रहे है की रोज राजनैतिक लालसा में पद लोलुप्ता के वशीभूत होकर समाज सुधार के नाम से विभिन्न संगठन बना तो लेते है परन्तु आपसी वैचारिक मतभेद के कारण शीघ्र धराशायी हो जाते हैऔर हंसी के पात्र बन जाते हैं। ऐसे तो हम सभी ने अपने देश का इतिहास पढ़ा है और मुझे नही लगता कि वह किसी को बताने की आवश्यकता है । फिर भी संक्षिप्त में
देश की इतिहास पर आते है और उस घटना क्रम को अपने समाज से जोड़कर समझने का प्रयास करते है।
स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 के पहले देश के करोड़ों लोगो ने आजादी की जंग में विभिन्न दलों और संगठनों ने हिस्सा लिया , कुछ लोग पार्टी से जुड़े हुये थे, कुछ नही जुड़े हुये थे। कोई नरम दल में था कोई गरम दल में था, उस समय भी वैचारिक मतभेद थे देश प्रेमियों में किंतु सबकी मंजिल एक थी। भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराना और हम सफल हुये। हमारा देश सर्वप्रभुत्व सम्पन्न लोकतांत्रिक देश घोषित हो गया। आज़ादी से पूर्व भारत विदेशियों के गुलाम क्यों रहा इसका इतिहास भी सर्व विदित है। अब आते है हमारे समाज की दशा और दिशा पर और सोचिए कि हमारा समाज 75 सालों बाद भी समाज में एकता और भाईचारा का अभाव क्यों है? समाज जागरूक तो हो रहा है एक सूत्र में बांधने के लिये अलग अलग संगठनो ने, समाज सेवियों और चिंतकों में चाहे वो कोई किसी संगठन से जुड़ा हो या ना जुड़ा हो सभी तन, मन, धन से संगठित करने का प्रयास कर रहे है। लेकिन नतीजा सामने है। कोई किस पार्टी का समर्थक है तो कोई किसका। जब हम अलग अलग पार्टियों और संगठनों से जुड़े रहेंगे तो भेदभाव और विपरीत सोच के साथ वैचारिक मतभेद तो रहना अवश्यम्भावी है और मंजिल भी अलग अलग रहना स्वाभाविक है।
अलग अलग संगठनों के निर्माण करने में भी कोई बुराई नहीं है, संगठन बनने भी चाहिए परन्तु जो परिस्थितियां आज हमारे सम्मुख खड़ी है जिसका हम सब अनुभव कर रहे है उसका उदाहरण भी देख लीजिए:
जैसे समाज की सबसे बड़ी महापंचायत अखिल भारतीय रेगर महासभा के नेतृत्व कर्ता श्रीमान बी एल नवल साहब है जब वे चुनाव जीत गए तो इनके पक्षधारी तो खुश है लेकिन विपक्षधारी जो चुनाव हार चुके थे वे नाखुश है ओर हमेशा उनके द्वारा किये जा रहे कार्यों में मीन मेख निकालने को तैयार बैठे रहते है। इसी प्रकार एक संगठन और है राजस्थान प्रांतीय रेगर महासभा जिसके नेतृत्व कर्ता श्रीमान दयानंद जी कुलदीप साहब है। जब इन्होंने राजस्थान प्रान्त की महासभा के नेतृत्व संभाला तो इनके साथ भी यही हो रहा है कि जो इनके पक्षधारी है वो सब खुश है और जो विपक्षधारी है वे सब नाखुश है। ऐसे ही इन दोनों महासभाओं ने प्रदेश,जिला, तहसील/ब्लॉक स्तर पर भी कार्यकारिणी नामजद की है और अभी तक भी किये जा रहे है वहां भी पक्ष विपक्ष आमने सामने खड़े है। जिनका कार्य मात्र एक दूसरे की टांग खींचना है। ऐसे में हम किस प्रकार एक दूसरे को एक सूत्र बांध पाएंगे। यहां पर मेरा यही सवाल उठता है कि हम एक दूसरे का विरोध करके क्या साबित करना चाहते है? क्या हम एक समाज से नहीं है, क्या रेगर नहीं है, क्या हमारे समाज के संगठनों के नेतृत्व कर्ता रेगर समाज से नहीं है, क्या नेतृत्व का चुनाव समाज ने नहीं किया है? अगर है तो फिर उनका नेतृत्व स्वीकार करने में क्या दिक्कत हो सकती है। जब देश की जनता अपने नेता का चुनाव करती है वहां भी पक्ष और विपक्ष होता है क्योंकि हर व्यक्ति किसी एक नेता को पसंद नहीं करती उनकी भी अपनी अपनी चाहना होती है फिर भी जिस नेता के सिर पर जनता ताज रखती है 5 साल तक उसको स्वीकार तो करना ही पड़ता है अतः हमें भी तीन साल तो स्वीकार करना ही चाहिए। अगर वे नेतृत्व करने में असफल हो रहे हो तो उनकी टांग खिंचाई के बिना उनको सही रास्ता या मार्गदर्शन भी तो दिया जा सकता है, अतः हम भले ही विभिन्न पार्टी या संगठनों से जुड़े हुए हो लेकिन हमारा लक्ष्य हमारी मंजिल एक होनी चाहिए और वो है हमारी “एकता और जागृति” और इसी एकता के बल पर मंजिल को पाई जा सकती है।
मेरा समाज बंधुओं और विभिन्न संगठनों से अनुरोध है कि यदि समाज को राजनैतिक प्रतिनिधत्व चाहिए तो हमें अपने समाज को एक सूत्र में पिरोना होगा इस हेतु आपसी मतभेद भुलाकर एक जाजम पर आकर चिंतन मनन और चर्चा करनी होगी। इस क्रम में मेरे विचार से एक नया रोड मैप निम्न प्रकार से तैयार करना चाहिए और समाज के संगठनों को प्रत्येक शहर, कस्बे, गांव, गली मोहल्ले के लोगों से संपर्क साधना चाहिए।
01. सर्व प्रथम बड़ी राजनैतिक पार्टियों के पिछलग्गू बनना त्याग कर उनको समर्थन देना छोड़ना चाहिए।
02. अगर कोई राजनैतिक पार्टी समाज को टिकिट नहीं देती है तो समाज का चुनाव लड़ने वाले सक्षम व्यक्ति को निर्दलीय के रूप में खड़ा होना चाहिए लेकिन उसके विरोध में उसी चुनावी क्षेत्र में समाज का अन्य व्यक्ति को खड़ा नहीं होना चाहिए।
03. विधान सभा/लोकसभा क्षेत्र में रहने वाले समाज के लोगों की एक वोटर लिस्ट बनाई जानी चाहिए। तदनुसार समाज की संख्या बल के अनुसार प्रत्याशी को खड़ा होना चाहिए
04. समाज की जन गणना भी कराई जानी चाहिए।
05. समाज में अमीर गरीब, छोटे बड़े पदानुसार का भेदभाव को त्यागना चाहिए इसके लिए संगठनों द्वारा लोगों में जागरुकता लानी चाहिए।
06. राजनैतिक पार्टियों के प्रमुख सभी सवर्ण समाज के लोग हैं और समक्ष हमेशा टिकिट की भीख मांगते रहते है परन्तु खाली हाथ लौटना पड़ता है।यहाँ विचारणीय प्रश्न है कि जिनके समक्ष हम भीख मांगने जाते है वे अल्पसंख्यक है उनको देने का अधिकार और शक्ति किसने दी? अतः टिकिट की मांग करना बंद कर देना चाहिए बल्कि उनके सामने आपकी एकता की शक्ति दिखानी चाहिए।
07. अपने ही समाज के लोगों पर पद, प्रतिष्ठा, धन, एश्वर्य आदि का रौब दिखाने के बजाय समाज के हर तबके के लोगों को साथ लेकर चलना चाहिए।
08. आज के युवा कल के समाज के कर्णधार है, उनमें जोश और ताकत है, उन्हें बुजुर्गों का मार्गदर्शन चाहिए अतः समाज में इन शिक्षित युवाओं को आगे आने का मौका देना चाहिए।
ये मेरे निजी विचार है, अतः आप सभी से हाथ जोड़ कर विनंती है कि मैं कोई समाज सुधारक व राजनीतिज्ञ नहीं हूं परन्तु जो कुछ मेरे मन में समाज की एकता हेतु विचार आये है उनको कलमबद्ध करने का प्रयास किया है कि यदि राजनीति में प्रतिनिधत्व चाहिए तो आपसी मतभेद,वैचारिक मनमुटाव और स्वार्थ की भावना को त्याग कर समाज को एक सूत्र में बांधने का प्रयास कीजिये और समाज के नेतृत्व में विश्वास प्रकट करने के भी प्रयास कीजिये।अंत में पुनः देश के इतिहास की ओर ध्यान दिलाते हुए निवेदन करना चाहूंगा कि जिस तरह स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त 1947 से 1952 एक आम चुनाव तक 40 करोड़ जनता ने उन कुछ सौ लोगो पर विश्वास जताया और पक्ष विपक्ष ने भी अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से निभाई उसी तरह समाज को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी चाहिए और फिर परिणाम देखिए आने वाला कल हमारा होगा।
(डिस्क्लेमर: इस लेख में लेखक के निजी विचार हैं l लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है, इसके लिए समाजहित एक्सप्रेस उत्तरदायी नहीं है l)