Wednesday 04 December 2024 11:53 AM
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विचलित सहस्र धारा की भांत, मेरा रैगर समाज ।।

रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया द्वारा सोशल मिडिया के माध्यम से समाज के प्रबुद्धजनो से निवेदन कर पूछा गया था कि रैगर समाज कौन सी विचारधारा पर जीवन जी रहा है?” इस विषय पर बहुत सी प्रतिक्रियायें प्राप्त हुई, समाजहित एक्सप्रेस के माध्यम से उन सभी प्रबुद्धजनों का हृदय की गहराईयों से आभार व धन्यवाद l उन प्रतिक्रियाओ मे से हमारी टीम ने समाजसेवी व समाजशास्त्री कृष्ण सीवाल जी के स्पष्ट व निष्पक्ष महत्वपूर्ण विचारो को समाजहित एक्सप्रेस में प्रकाशित करने का निर्णय लिया l मुझे उम्मीद है कि समाज विचारक कृष्ण सीवाल जी (Engineer, BSW, MSO, JMC) के स्पष्ट व निष्पक्ष महत्वपूर्ण विचारो से आप अवश्य प्रभावित होंगे, क्योंकि समाज में सुधार लाने के लिए हमे अपने जीवन में और अपने विचारों में सकारात्मक बदलाव लाने की जरुरत होती है l सीवाल जी के विचारो का विस्तृत लेख आपके समक्ष प्रस्तुत है :-

समाज विचारक कृष्ण सीवाल जी

विचलित सहस्र धारा की भांत, मेरा रैगर समाज ।।

जनप्रिय समाचार बुलेटिन समाजहित एक्सप्रेस के मुख्य संपादक, प्रसिद्ध समाज सेवक माननीय डॉ० रघुबीर सिंह गाडेगावलिया जी द्वारा समाज के वर्तमान हालातों से रूबरू कराता हुआ प्रश्न पटल पर रखा गया कि रैगर समाज कौन सी विचार धारा पर जीवन जी रहा है?? जोकि वाकई चिंतन-मनन का विषय है ।

मेरे विचार में लगता तो है कि रैगर समाज शैक्षणिक और आर्थिक विकास की ओर अग्रसर है, यह बात आंकड़ो पर सटीक भी बैठती है मगर यही प्रगति समाज को सामाजिक ताने-बाने की राह से भटका रही है । जानने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना होगा ।

रैगर समाज का उद्भव कालांतर में कहॉ से और कैसे हुआ ? यह स्पष्ट नहीं है । अलग-अलग इतिहास कारों की राय भी अलग-अलग ही लिखी गई है । कोई हमें रजवाड़ो से संबंधित परिवार बताता है , कोई सगरवंशी क्षत्रिय बताता है , कोई सूर्यवंश के सूरमा तो कोई वैश्य व्रण से संबंधित समाज बताते हैं । मेरा मानना यह है कि कोई व्यक्ति कितना भी गरीब, लाचार अथवा मंदबुद्धि का हो , अगर वह ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य समाज से है तो भी वह कुजात अथवा अछूत नहीं माना गया  भले ही वह कितना ही निम्न स्तर का कार्य अपना ले । ना ही हम किसी राजा-महाराजा अथवा बादशाह से जंग लड़ कर हारते हुए उनके कैदखाने में गुलाम रहे जहॉ हमें सूर्यवंशी से अछूत बना दिया गया हो । इसका सीधा-सीधा मतलब यह हुआ कि ऐसे सभी इतिहासकार सिर्फ सांत्वना देने हेतू हमें सगरवंश, राजपूत आदि लिख गये, खैर !

रैगर समाज नितांत अछूत वर्ग के अन्तर्गत ही किसी प्रकार  कठिन हालातों से समझौता करते हुए जीवन यापन कर अपने पैरों पर खड़ा होने की कोशिशें तो करता ही रहा है साथ ही रैगर समाज के कुछ समझदार समाज प्रेमी अपना कीमती समय समाज की दयनीय दशा को संवारने में भी लगे रहे हैं ।

हमारे समाज के जागरूक आदरणीय संतो ने अपना सर्वस्व त्यागते  हुए समाज को जाग्रत कर प्रगतिपथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी । सनातनी और कबीरपंथी , दोनो ही मिज़ाज के रैगर संत महात्माओं ने उस समय एक होकर समाज के क्रान्तिकारी बुद्धिमानों को साथ लिया और एक शिक्षित, संगठित, प्रगतिशील समाज के सपने को साकार करने में जी जान से जुट गये जिसका जीता-जागता उदाहरण सन 1944 में दौसा, राजस्थान में आयोजित प्रथम रैगर महासम्मेलन है जहॉ हर रैगर के सम्मानित जीवन की दिशा तय हुई थी । वहॉ उस समय के बुद्धिजीवियों तथा समाज सुधारकों ने संत महात्माओं के सपने को साकार करने में काफी मेहनत की थी । समाज चिन्तक सूर्यमल मौर्या, लाला राम जलुथरिया, पं मंगलानंद मोहिल, राम स्वरूप जाजोरिया, डॉ खूबराम जाजोरिया, नवल प्रभाकर, कॅवरसैन मौर्या,  नत्थुराम अटल, मोहन लाल कांसोटिया, बिहारीलाल जाजोरिया, शम्भू दयाल गाडेगावलिया, खुशहाल चंद मोहनपूरिया, जयचंद मोहिल, भोलाराम तोंणगरिया, प्रभुदयाल रातावाल, घीसूलाल सवासिया आदि-आदि महानुभावों ने संत शिरोमणी स्वामी ज्ञान स्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्माराम लक्ष्य जी, संत लक्ष्मण राम सुकरिया जी,स्वामी गोपालराम महाराज, स्वामी रामानंद जिज्ञासु, स्वामी जीवाराम महाराज,स्वामी केवलानंद भारती, स्वामी मौजी राम महाराज आदि-आदि के इशारे भर से तन-मन-धन और समय देकर रैगर समाज के जीवन के अंधेरों को उजयारी राहो की ओर मोड़ने में कोई कसर बाकी नहीं रखी ताकि हमारा समाज रूढ़ीवादी बेड़ियों को जल्द से जल्द तोड़ कर स्वर्णिम भविष्य की ओर अग्रसर हो । स्वामी ज्ञान स्वरूप महाराज ने तो जीर्ण-शीर्ण समाज को चेताते हुए शिक्षा का महत्व बताया कि शिक्षा रहित कौम कभी भी धन सम्पन्न और सभ्य नहीं हो सकती।

समय का चक्र घूमा और शिक्षा की अलख जगी । लगभग अशिक्षित समाज होने के बावजूद भी समाज संगठित था , आपसी भाईचारा था, एक दूसरे के मददगार भी थे, बिखराव की स्थिति लगभग नगण्य थी क्योकि कुछ था ही नहीं ।

समय के साथ-साथ शिक्षा का प्रचार-प्रसार बढ़ने लगा । बालिका शिक्षा को भी प्राथमिकता के आधार पर देखा जाने लगा । यही समय था सामाजिक परिवर्तन का । इसी समय रैगर समाज की बागडोर ऐसे नेताओं के हाथ में आ गई जिन्होने समाज के हित में कुर्बान हो जाना तो बहुत दूर की बात है , कभी समाज के जरूरतमंद व्यक्ति की तरफ देखना और उसके भले के बारे में सोचना भी पाप समझते रहे हैं ।।

दूसरी ओर जैसे जैसे शिक्षा का प्रसार बढ़ रहा था वैसे-वैसे आपसी स्वार्थ टकराने लगे और अति महत्वाकांशा के कारण फूट  ईर्षा, मतभेद, स्वार्थवश टांग खिचाई की कवायद शुरू हो गई।  संतो और समाज सुधारकों की मेहनत से जन जागरण तो शुरू हो गया मगर संस्कारों की बाती रोशन ना हो सकी । रैगर समाज अच्छी और उच्च शिक्षा प्राप्त कर नौकरियॉ और विभिन्न व्यवसाय तो करने लगा मगर अंध आस्था की जंजीरें ना तोड़ पाया । शिक्षित समाज की यह विडम्बना ही है कि आज भी ज्यादातर लोग विभिन्न पंथों के कर्मकाण्ड और पाखंडवाद की गिरफ्त में फंसे हुए हैं । आज का रैगर समाज शिक्षित भी हुआ,  IFS ,IAS ,IPS ,IRS , DAS ,RAS ,DR. ENGG., JUDGE,  ADVOCATE , PROFESSOR,  SECY. TEACHER आदि कई महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं l यह देख सुन कर गर्व भी होता है, और सामाजिक आत्मविश्वास भी बढ़ता है कि रैगर समाज के लोग सरकारी बंगलों में रह रहे हैं और देश की तरक्की में रैगर समाज का सहयोग जारी है । यह विचार ही मन को गदगद कर देता है । लेकिन इन महानुभावों द्वारा सामाजिक सहयोग से रैगर समाज का जो स्वरूप आज होना चाहिए था, वो इन अफसरों की सहयोगात्मक निष्क्रियता के चलते लगभग नगण्य है । इन्ही महानुभावों के नकारात्मक रवैये के रहते समाज में संगठित रहने की भावना को नुकसान हो रहा है । ऊंचे पदों पर आते ही ये लोग अपने बीबी-बच्चों संग समाज से दूरी बना लेते हैं साथ ही अपने बच्चों को भी सामाजिक एवं पारिवारिक संस्कारों से दूर ही रखते हैं नतीजतन आगे चल कर इन लोगों की रिश्तेदारी भी नहीं बढ़ पाती, यह अहसास इन्हें सेवानिवृत्त होने के बाद होता है और फिर ये लोग समाजिक मंचो की ओर माला पगड़ी की लालसा पाले भटकते फिरते हैं क्योकि अपनी औलादों को तो शौक- शौक में विदेश अथवा अन्य जाति-धर्म के स्वांग में डाल देते हैं जोकि नहीं होना चाहिए।

अब समाज का कुछ प्रतिशत हिस्सा पाखंडवाद की बेड़ियों को तोड़कर वास्तविक जीवन जीने की राह पर चल निकला है, यह एक सुखद समाचार है ।

पाखंडवाद और अंधविश्वास का चरित्र है कि यह नई आशा की किरण दिखाता है जिसकी जकड़न में साधारण लोग आसानी से आ जाते हैं यही वजह है कि हमारे समाज के पढ़े लिखे लोग भी विभिन्न पंथो के प्रवचनों से प्रभावित होकर दिनोंदिन खंड-खंड होते जा रहे हैं । रैगर समाज सहस्र धारा में बह रहा है और इन अलग-अलग धाराओं का बहाव भी किसी एक दिशा की ओर नहीं है जिस कारण एकीकृत बहाव की तेज धारा एक नदी नही बन पा रही ।  इसी एक कारण से हमारा समाज राजनितिक क्षेत्र में भी नेतृत्व स्तर पर विलुप्तप्राय हो गया है । ये विलुप्तता रैगर समाज की तरक्की में सबसे बड़ी बाधा होगी । यही सच है ।।

रैगर समाज ने जीविका अर्जित करने की शिक्षा तो ले ली है मगर जीवन जीने की शिक्षा से अभी तक वंचित है जबकि शैक्षणिक योग्यता के संग जीवन जीने की शिक्षा का होना भी अति-आवश्यक है ।

मेरा मानना है कि रैगर समाज की अलग-अलग दिशाओं में गिरती बिखरती धाराओं को एक ही दिशा में बहते हुए नदी सा वैभव बनाना होगा, इसके लिए अति महत्वाकांशा का त्याग करना ही होगा । आपसी मतभेद भुलाकर टांग खिंचु प्रवृति का त्याग करें । एक दूसरे पर भरोसा करें । समाज हित में समाज कार्यों में रुचि लें । राजनैतिक शून्यता में जा रहे समाज को एकजुट होकर संभाल लें तो वह समय दूर नहीं कि जो सपना हमारे संत-महात्माओं और समाज चिंतको ने देखा था वो सूरज अगली सुबह ही रैगर समाज के अंगना में रोशन होगा ।

अंत में मैं यही कहना चाहता हूँ कि :-अपना गम लेके कहीं और ना जाया जाए ।  घर में बिखरी हुई चीजों को फिर से सजाया जाए ।।

जय भीम-जय भारत l जय लक्ष्य जय रैगर समाज ll

✒️ कृष्ण सीवाल (समाज विचारक)

Engineer, BSW, MSO, JMC

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