हर दिन हो पृथ्वी दिवस ताकि पृथ्वी बच सकें
लेखक राम भरोस मीणा
(प्रकृति प्रेमी व समाज विज्ञानी)
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस l विकास के नाम पर पृथ्वी पर मौजूदा प्राकृतिक संसाधनों के साथ दिनों दिन बढ़ते मानवीय दखलन से सम्पूर्ण विश्व में पारिस्थितिकी अनुकूलता गड़बड़ाने के साथ विपरीत परिस्थितियां पैदा होते हुए पृथ्वी पर पर्यावरणीय हालात उस गति से बिगड़ते चले जा रहे हैं कि इन्हें नहीं सुधारा गया तों आने वाले पच्चास वर्षों में आज के हालातों को देखते हुए धरती, आकाश, समुन्दर में संजीव जगत का जीवित रहना बड़ा मुश्किल होगा। पृथ्वी पर इस प्रकार की कोई घटना नहीं घटे की यहां मौजूद सभी जीव जंतुओं मानव को प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़े और इसी को लेकर 22,अप्रेल 1970 में अमेरिका में सिनेटर गेलार्ड नेल्सन ने पर्यावरण रक्षा के लिए कोई नियम कानून नहीं होने के कारणों से पृथ्वी दिवस की शुरुआत करने के साथ राष्ट्रीय एजेंडे में सामिल कराने के लिए संघर्ष किया और सफल हुए इसके बाद से सरकारें अपने अपने एजेंडे में शामिल की ईपीए, स्वच्छ वायु अधिनियम, स्वच्छ जल अधिनियम लागू हुएं, लोगों को पर्यावरण के महत्व का पता लगा। लोगों में जागरूकता के साथ आज 52 वर्ष बाद भी पर्यावरणीय ख़तरे बढ़ते चले गये रियल टाइम एयरपांल्यूशन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया के 100 प्रदुषित बड़े शहरों में एक्यूआइ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है, आंक्सिजन की कमी महसूस होने लगीं हैं, हवा में धुल, प्लास्टिक, लोहे के कण, अपषिष्ट पदार्थ के साथ जहरीली गैसों की मात्रा बढ़ती जा रही है जो मानव के साथ सभी जीवों के शारीरिक क्षमताओं को खत्म कर रही हैं। बदलते मौसम चक्र के साथ आपदाओं के संकेत साफ़ दिखाई देने लगे हैं, कहीं बाढ़, कहीं सूखा, कहीं अतिवृष्टि तों कहीं अनावृष्टि के साथ ग्लेशियरों का पिघलते या कहें नष्ट होते दिखाई देना, समुन्दर का आगे बढ़ने सहित सभी आपदाएं पृथ्वी पर मौजूद प्राकृतिक सम्पदा जो उपहार स्वरूप प्राप्त हुई उनके साथ हुएं छेड़छाड़ का परिणाम है जिसका मानव के साथ सभी जीव जंतुओं को भुगतना भुगतना पड़ रहा है।
भारत प्राकृतिक संसाधनों के दोहन में किसी देश से पिछे नहीं है वर्तमान में इसके ओर बढ़ने के आसार बन गए हैं क्योंकि इसी वर्ष चीन से अधिक जनसंख्या भारत में होगी, जनसंख्या के बढ़ने के साथ विकास की गती भी बढ़ाना जरूरी होता है ऐसे में प्रकृतिप्रदत्त सम्पदाओ का शोषण होना स्वाभाविक है। टयुरिजम, औधौगिकरण, परिवहन, शहरीकरण के चलते अरावली पर्वतमाला की पहाड़ियों के अवशेष मिटते दिखाई देने लगे हैं, वन क्षेत्रों से वनसम्पदा नष्ट हो रही है, छोटी छोटी नदियां राज्स्व रिकार्ड से गायब दिखने लगीं हैं, जोहड़ तालाब अतिक्रमण की बलि चढ़ गये, कृषि जीन्स की पैदावार कम होने के साथ मानव की भोगवादी प्रवृत्ति ने अपने स्वयं के लिए खतरा पैदा कर लिया है।
आज इन बिगड़ते पारिस्थितिकी तंत्र एवं ग्लोबल वार्मिंग जैसे मुद्दों से सभी विपरीत परिस्थितियों में भारत सफलता हासिल कर सकता है, अपने प्राकृतिक सम्पदा जल,जंगल, जमीन, नदियां, स्वच्छता को बनाए रखने में सफल हो सकता है क्योंकि यहां सर्वाधिक युवा निवासी करते हैं और प्रत्येक युवा को प्रकृति के संरक्षण की ओर अपना हाथ बढ़ाना चाहिए, दुसरी तरफ यहां की संस्कृति में प्रत्येक धर्म जाति वर्ग को धार्मिक ग्रंथों, संस्कारों के माध्यम से जल, जंगल, जमीन, आकाश, सुर्य के उपासना करने के साथ साथ इनके संरक्षण को लेकर पहले से जागरूक किया गया है जिससे आज पुनः अपनाना है और प्रत्येक दिन को पृथ्वी दिवस के साथ अपनाने की आवश्यकता है ताकि हमारी पृथ्वी बच सकें।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस लेख में लेखक के निजी विचार हैं । आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए समाजहित एक्सप्रेस उत्तरदायी नहीं है ।