मानवता की नि:स्वार्थ भाव से की गई सेवा ही पुण्य का काम है
दिल्ली, समाजहित एक्सप्रेस (रघुबीर सिंह गाड़ेगांवलिया) l मानव समाज के हृदय के अंदर हमेशा सेवा भाव होना अति आवश्यक है सेवाभाव से जहा समाज के अंदर फैली कुरीतियां समाप्त होती हैं वही आपसी सौहार्द, अमन चैन शाति के साथ-साथ समाज का विकास भी होता है। हमे समाज में सबसे कमजोर असहाय, दबे, कुचले, गरीबों और जरूरतमंदों लोगों की नि:स्वार्थ भाव से यथासंभव सेवा कर के मानवता परिचय देना चाहिए l वास्तव में सेवा ही असली पूजा है । सच्चे मानवतावादी सेवक की दृष्टि में कोई भी गैर नहीं होता ।
समाज के बच्चों में प्रारम्भ से सेवा की भावना को जागृत किया जाना चाहिए ताकि वे आगे चलकर अपने सेवा-भाव से समाज में प्रतिष्ठा के पात्र बने । वास्तव में समाज के सुंदर निर्माण और भविष्य में उन्नति के लिए बच्चे में सेवा-भाव का विकास करना अत्यंत आवश्यक है । इस सेवा-भाव को विकसित करने के लिए परिवार ही सबसे सुन्दर संस्था है । अभिभावकों का दायित्व है कि वह स्वयं बच्चों के सामने अपने आचरण से ऐसा उदाहरण प्रस्तुत करें जिसे देखकर बच्चों में सेवा भाव का संस्कार पैदा हो ।
इतिहास में एक नहीं हजारों ऐसे उदाहरण हैं कि साधारण से साधारण व्यक्ति सामान्य सेवा मार्ग से चलते हुए समाज के महान सामाजिक कार्यकर्ता हुए हैं । किंतु यह होता तब ही है जब किसी का सेवा-भाव नि:स्वार्थता की चरम सीमा पर होता है । अपने आसपास चारों तरफ नजर दौड़ाइए आपको कोई बीमार, बूढ़ा या लाचार इंसान दिखलाई पड़े तो उसके कष्ट के बारे में पूछिए । किसी को बुखार हो रहा हो तो उसे बुखार उतारने की एक गोली दिला दीजिए । यदि आप वास्तव में कुछ करना चाहते हैं तो बड़े-बड़े अस्पताल खोलने की जरूरत नहीं, जरूरत है तो लोगों की छोटी-छोटी तकलीफों को दूर करने की । कोई भूख से व्याकुल होकर हाथ पसारे तो उसे उपदेश देने की बजाय पेट भर भोजन करा दीजिए । भीख देने की बजाय उसे रोजगार का अवसर दीजिए या उसका उचित मार्गदर्शन कीजिए ।
संत-महात्माओं के जीवन का अध्ययन करें तो पाएंगे कि उन सभी ने गरीबों और जरूरतमंदों की सेवा की है । उनके कार्योँ से हमें इस बात की सीख मिलती है । समाज में जहा अभाव है, वहा अभावग्रस्तों की सेवा करना, उनके जीवन में सुख एवं विकास लाना, यह एक छोटी सी कोशिश है । सेवा भाव हमारे संस्कारों में शामिल है । जब तक हम सिर्फ दूसरे की भलाई की भावना से किसी की सहायता करते हैं तब तक वह परोपकारी कार्य है, सेवा ही पुण्य का काम है।